राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था नेहरू से, सिर्फ हिन्दू लाॅ क्यों, सबके लिए समान नागरिक संहिता लाओ।
राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था नेहरू से, सिर्फ हिन्दू लॉ क्यों, सबके लिए समान नागरिक संहिता लाओ

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अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती एक समुदाय को कानूनी दखलंदाजी के लिए क्यों चुना गया।...

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले समान नागरिक संहिता की तरफदारी करते हुए कहा था यद्यपि 1956 में हिन्दू लॉ कोडीफाई हो गया, लेकिन पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का कोई प्रयास नहीं हुआ। ऐसी ही बात भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने 1951 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से कही थी।

राष्ट्रपति डॉक्टर प्रसाद ने सिर्फ हिन्दू लॉ को कानून में पिरोने का विरोध करते हुए कहा था कि अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती। सिर्फ एक समुदाय को ही कानूनी दखलंदाजी के लिए क्यों चुना गया।

तत्कालीन राष्ट्रपति के कहने के बावजूद न तो तब सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए कदम उठाया न उसके बाद कभी प्रयास हुए। 1951 में सिर्फ हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाने पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच काफी घमासान मचा था। दोनों ओर से पत्राचार हुए थे, बात अधिकारों तक पहुंची और अंत में अटार्नी जनरल की राय ली गई तब मामला शांत हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट ने गत 13 सितंबर के फैसले में कहा है कि संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निदेशक तत्व में इस उम्मीद से अनुच्छेद 44 जोड़ा था कि सरकार देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करेगी, लेकिन आज तक इस दिशा में कुछ नहीं हुआ। शुरुआत से मामले पर निगाह डालें तो समान नागरिक संहिता का प्रावधान भले ही संविधान में शामिल कर दिया गया हो, लेकिन संविधान लागू होने के बाद वह सरकार की प्राथमिकता मे नहीं रहा।

1951 में हिन्दू पर्सनल लॉ को कोडीफाई करने की कोशिश शुरू हुई और नेहरू सरकार हिन्दू कोड बिल लाई जिसका तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कड़ा विरोध किया था। उस समय की स्थिति की झलक इस मसले पर पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच हुए पत्राचार को देखने से मिलती है।

14 सितंबर 1951 को राष्ट्रपति प्रसाद ने प्रधानमंत्री नेहरु को पत्र लिखा था जिसमे सिर्फ हिन्दुओं के लिए हिन्दू कोड बिल लाने का विरोध करते हुए कहा था कि अगर जो प्रावधान किये जा रहे हैं वो ज्यादातर लोगों के लिए फायदेमंद और लाभकारी हैं तो सिर्फ एक समुदाय के लोगों के लिए क्यों लाए जा रहे हैं बाकी समुदाय इसके लाभ से क्यों वंचित रहें।

अगर मौजूदा कानून अपर्याप्त और आपत्तिजनक है तो सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता क्यों नहीं लागू की जाती सिर्फ एक समुदाय को ही कानूनी दखलंदाजी के लिए क्यों चुना गया।

उन्होंने कहा था कि वह बिल को मंजूरी देने से पहले उसे मेरिट पर भी परखेंगे। उन्होंने नेहरू को यह पत्र 15 सितंबर को भेजा था। नेहरू ने उसी दिन उन्हें उसका जवाब भी भेज दिया जिसमें कहा कि आपने बिल को मंजूरी देने से पहले उसे मेरिट पर परखने की जो बात कही है वह गंभीर मुद्दा है। इससे राष्ट्रपति और सरकार व संसद के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। संसद द्वारा पास बिल के खिलाफ जाने का राष्ट्रपति को अधिकार नहीं है।

डाक्टर प्रसाद ने नेहरू को 18 सितंबर को फिर पत्र लिखा जिसमें उन्होंने संविधान के तहत राष्ट्रपति को मिली शक्तियां गिनाई साथ ही यह भी कहा कि वह मामले में टकराव की स्थिति नहीं लाना चाहेंगे। इसके बाद मामले पर अटार्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ की राय ली गई। सीतलवाड़ ने 21 सितंबर 1951 को दी गई राय में कहा कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से चलेंगे। मंत्रिपरिषद की सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है। इससे पता चलता है कि उस वक्त भी समान नागरिक संहिता पर चर्चा चल कर रह गई थी और आज भी मामला चर्चा तक ही सीमित है।

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