लापरवाह नहीं जिम्मेदार बनो , सरकार को कोसना बंद करो जिम्मेदार बनो - जिम्मेदार बनो*

✍️ सम्पादक जय शंकर यादव*

लापरवाह नहीं जिम्मेदार बनो , सरकार को कोसना बंद करो  जिम्मेदार बनो - जिम्मेदार बनो*

पहली नजर में ये एकदम फिलिम टाइप वाला सीन लग सकता है। कि मनबढ़ ठाकुर बलवंत सिंह ने कानपुर में अपना ही जमीन कब्जिया लिया था। सूचना पाकर फिरोजाबाद की महिला दरोगा अपने स्कूटी से ठाकुर बलवंत सिंह को गिरफ्तार करने अकेले पहुंची, लेकिन ठाकुर ने अपना घोड़ा दौड़ाकर उस महिला दरोगा को रौंद दिया। मुखबिर की सूचना पर पुलिस वाले घटनास्थल पर पहुंचे तो ठाकुर उन पर फायरिंग करते हुए दिनदहाड़े अंधेरे का लाभ उठाकर अपने साथी के साथ भाग निकला। पुलिस वाले ठाकुर के घोड़े से रौंदाई घायल महिला दरोगा को लेकर इलाज के लिये धड़धड़ाते अस्पताल चहुंप गये। वार्ड ब्वॉय ने स्ट्रेचर देने की कोशिश की, लेकिन पुलिस वाले इतनी तेजी में थे कि फारम नहीं भर पाये, और महिला दरोगा को गोद में ही उठाकर ही नीट में जुगाड़ से पास डाक्टर के पास ले गये।

पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। मामला दूसरा है। अलग टाइप का। "मामला ये है कि फिरोजाबाद में तैनात महिला दरोगा प्रीति राय एक सड़क हादसे में घायल हो गईं थी, वहीं पास में मौजूद फिरोजाबाद की महिला थाना प्रभारी रंजना गुप्ता उन्हें अपने वाहन से लादकर अस्पताल पहुंची, लेकिन कोई जुगाड़ नहीं होने की वजह से हिम्मत दिखाते हुए गोद में उठाकर प्रीति को डाक्टर के पास ले गईं।" फिर भी कुछ मुफ्तखोर जनता किसिम के लोग आरोप लगायेंगे कि अस्पताल में स्ट्रेचर नहीं मिला, इसलिये थाना प्रभारी मजबूरी में महिला दरोगा को गोदी में लादकर अस्पताल ले गईं। कुछ लोग उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक पर भी आरोप लगायेंगे कि उनके नेतृत्व में चल रही सरकारी अस्पताल की व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है, लेकिन मेरा सवाल है कि स्ट्रेचर की व्यवस्था करना क्या मंत्री का काम है? अस्पताल में अच्छा इलाज हो, मरीज की अच्छी देखरेख की व्यवस्था करना क्या मंत्री का काम है?

बिल्कुल नहीं, उपर का कोई भी काम मंत्री का नहीं है। ये विभागीय मंत्री कि जिम्मेदारी में नहीं आता है कि अस्पताल में स्ट्रेचर है कि नहीं। दवाई है कि नहीं। डाक्टर है कि नहीं। इलाज ठीक से हो रहा है कि नहीं। मंत्री का काम केवल इतना है कि वह डाक्टरों का सही ढंग से और नम्रतापूवर्क तबादला और पोस्टिंग कर दे, उसके बाद का सारा काम डाक्टरों का है। अगर ट्रांसफर और पोस्टिंग होने के बाद भी डाक्टर काम नहीं कर रहे हैं तो यह डाक्टरों की दिक्कत है, इससे विभागीय मंत्री का कोई भी लेना देना नहीं है। इसमें डाक्टर और कंपाउंडर ही जिम्मेदार हैं। अगर फिरोजाबाद में घायल महिला दरोगा को स्ट्रेचर नहीं मिला तो इसकी सारी जिम्मेदारी मरीज की है। क्या मरीज अस्पताल में खोज खाजकर एक स्ट्रेचर का जुगाड़ भी नहीं कर सकता? अगर मरीज ऐसा नहीं कर सकता तो फिर निश्चित रूप से वह अस्पताल में इलाज पाने का हकदार ही नहीं है। इसमें तो डाक्टर की भी कोई गलती नहीं है। पूरी गलती मरीज की है।

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