*प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का भविष्य खतरे में, बच्चों को नही पता विद्यालय का नाम*

"कलाम द ग्रेट न्यूज रिपोर्टर रीता देवी"

*प्राथमिक विद्यालय में बच्चों का भविष्य खतरे में, बच्चों को नही पता विद्यालय का नाम*

बाराबंकी- प्राथमिक विद्यालय में गरीब और किसान के बच्चों का भविष्य सवारा जाता है, क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर और ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को मुफ्त और अच्छी शिक्षा मिल सके,यूपी सरकार लगातार शिक्षा के क्षेत्र में आये दिन बदलाव करती रहती हैं जिससे शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो, साथ ही सरकार शिक्षा के साथ-साथ बच्चों के ड्रेस से लेकर जूते मोजे, स्वच्छ व पोष्टिक भोजन की सुविधा उपलब्ध कराती हैं यूपी सरकार ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की शिक्षा को लेकर तनिक भी लापरवाही बर्दाश्त नही करती हैं और ऐसा करने का कारण यह हैं कि हर महिने लाखों करोड़ो रूपए जो खर्च करती हैं इसीलिए सभी सरकारी विद्यालयों में स्मार्ट क्लास ,अनुभवी शिक्षक ,और ऐसे ही बहुत सी सुविधाए देती हैं। अब बात करते हैं धरातल की जो सरकार की मंशा के विपरीत हैं आज राष्ट्रीय न्यूज एक्स्प्रेस के ब्यूरो चीफ रामपाल मौर्य अपनी टीम के साथ एक प्राथमिक विद्यालय पहुचें जहां की शिक्षा पर दिमक लगा देख दंग रह गए पूरी खबर जनपद बाराबंकी तहसील व खंड विकास सिरौलीगौसपुर के ग्राम पंचायत बिरौली के अंतर्गत अगेहरा में स्थित प्राथमिक विद्यालय अगेहरा विकास खंड सिरौलीगौसपुर जनपद बाराबंकी की हैं जहां कक्षा एक से लेकर कक्षा पाँच तक के बच्चों का भविष्य उस विद्यालय के अध्यापकों पर हैं पूरे विद्यालय में पाँच शिक्षक प्रबंधक अशोक शुक्ला, सहायक अध्यापक अंजली दोहरे,शिक्षामित्र सत्तनलाल,अवनीश कुमार शिक्षामित्र है प्रबंधक महोदय बाराबंकी से आते जिनके विषय में अन्य अध्यापकों ने कहा कि प्रबंधक महोदय काफी शिक्षित हैं लेकिन बच्चों अच्छी शिक्षा देने विफल रहे अब बात करते है बच्चों की हमारी टीम सबसे पहले रसोई घर लगभग साढे 10 बजे दिन शुक्रवार का है इसलिए मेनू में तहरी बनना लेकिन दोनो रसोईया बैठी मिली जिन्हे भोजन बनाने का आदेश नही मिला जोकि बहुत ही दयनीय है। स्कूल की साफ सफाई स्वच्छता अभियान को ताख पर रख दिया शौचालय में गंदगी का अंबार मिला सवाल अब यह हैं की शौचालय इस्तेमाल करने लायक हैं नही, ऐसे में बच्चें शौच के लिए जाते कहां हैं और महिला अध्यापक को शौचालय की आवश्यकता पड़ती होगी पानी की व्यवस्था ठीक नही, पानी की टंकी दिखावे के लिए हैं लेकिन पानी नही। अब चलते हैं कक्षाओ की तरफ पाँच अध्यापक में सिर्फ तीन ही अध्यापक मौजूद मिले प्रबंधक महोदय ट्रेनिंग पर थे पूरे विद्यालय में 123 बच्चों का नामांकन हुआ है जिसमें से 52 बच्चों की उपस्थित थी ।जब कक्षा पाँच के बच्चों से बात की गई तो चौका देने वाला सच सामने आया एक क्लासरूम में दो कक्षा  4 और 5 के बच्चें थे कक्षाओ में मौजूद सभी बच्चों से विद्यालय का नाम पूंछा गया जिसमें से दो ही बच्चें सही जवाब दे पाए, कक्षा तीन के बच्चों  ने सही जवाब नही दिया एक और दो के बच्चें किया ही बता पायेंगे। बहुत बड़ा सवाल हैं सरकारी अध्यापक की सैलरी दस हजार से शुरू होकर 80 हजार से 90 हजार तक हैं लेकिन शिक्षा 0 के बराबर हैं आप सोच सकते हैं जिस विद्यालय में बच्चे आपना नाम ठीक से नही लिख पाते हो उस विद्यालय में बच्चों का भविष्य कैसा होगा ,अध्यापक आते है उपस्थित दर्ज करते हैं और सरकार की दी गई सैलरी से अपनें बच्चों  को उच्च क्वालिटी की शिक्षा प्राप्त हो उनका भविष्य बने ये सोच कर महंगें प्राइवेट स्कूल में पढाते हैं  जब कि प्राइवेट अध्यापक की सैलरी सरकारी अध्यापक की सैलरी में जमीन और आसमान का फर्क होता हैं उसके बाद भी प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा अच्छी दी जाती है साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता है सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध होती हैं तो वही सरकार, सरकारी विद्यालयों पर लाखों खर्च करती है

जिसके बावजूद विद्यालय में शिक्षा व्यवस्था पर दिमक बनकर कुछ अध्यापक बच्चों का भविष्य खत्म करने पर अमादा हैं जितना बजट सरकार स्कूल चलो अभियान, स्कूल की साफ सफाई, मिडडे मील जैसी योजनाओ पर खर्च करने में लगा देती हैं जिसके बाद भी गरीब और किसान के बच्चों अच्छी शिक्षा नही मिल पाती हैं हां अगर सरकार यह नियम लागू कर दे  कि सभी सरकारी अध्यापक अपने बच्चों। को  सरकारी विद्यालय में पढायें तभी शिक्षा व्यवास्था को  ठीक किया जा सकता हैं  अन्यथा सरकार की तमाम प्रयासों पर पानी फिरता रहेगा। शायद यही वजह है कि परिजन अपने बच्चों को  प्राइवेट स्कूल में पढाने को  मजबूर है जिसका फायदा प्राइवेट स्कूल वाले भी खूब उठाते हैं और मनमाने ढंग से फीस वसूलते   हैं  सरकार को ऐसे अध्यापकों पर जांच बैठाकर दोषी पाए जाने पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।

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